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इन्द्रानी / रामदेव रघुबीर

‘‘ओऊम् भूर्भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो न प्रयोदयात्’’

दिव्य गायत्री मन्त्र जप इन्द्रानी ने,
बाँधी राखी पति के हाथ, दाएँ में।
कही पति युद्ध करन जाओ,
हम जीत की जय को मनाएँगे॥

आरती उतारी इन्द्र की इन्द्रानी ने,
चरण छुई सुख सीस धरे।
चले पति इन्द्र फिर युद्ध करन के,
सती के तप के बल को लिए॥

भै घमासान युद्ध राक्षस दल से,
इन्द्र देवत मुयी-मुयी मार।
जब ताकै इन्द्र राखी डोर के,
तो बल लागै चार॥

राखी के बन्धन का देखो हाल,
एक-एक डोरे बने ढाल।
जैसे इन्द्रानी साथ भी लड़ती थी,
इन्द्र को जिताने में॥