इवान बूनिन इवान बूनिन ऐसे पहले रूसी लेखक थे, जिन्हें नोबल पुरस्कार मिला था। 22 अक्तूबर को इवान बूनिन का जन्मदिन मनाया जाता है।
जन्म
इवान अलेक्सेयविच बूनिन का जन्म 22 अक्तूबर 1870 को वरोनेझ नगर के निकट एक जागीरदार परिवार में हुआ था। वरोनेझ मध्य-रूस का एक प्रसिद्ध प्रांत है और जैसाकि बूनिन ने अपनी आत्मकथा में लिखा है - "तलस्तोय सहित रूस के करीब-करीब सभी महान् लेखक मध्य-रूस में ही जन्मे हैं।"
इवान बूनिन ने बहुत छोटी उम्र में लिखना शुरू कर दिया था। वे निबन्ध, रेखाचित्र और कविताएँ लिखा करते थे। उनके रचनाएँ इतनी गम्भीर होती थीं कि रूसी आलोचकों और समीक्षकों का ध्यान तुरन्त ही उनकी ओर चला गया और 1903 में रूस की विज्ञान अकादमी ने उन्हें पूश्किन पुरस्कार देकर सम्मानित किया। बूनिन को दो बार पूश्किन पुरस्कार दिया गया। फिर 1909 में इवान बूनिन को रूस की साहित्य अकादमी का महत्तर सदस्य चुन लिया गया। इस तरह क्रान्तिपूर्व ज़ारकालीन रूस में इवान बूनिन सबसे कम उम्र के अकादमीशियन बन गए थे।
लोकप्रियता
ख़ुद इवान बूनिन का मानना था कि पाठकों के बीच उनकी लोकप्रियता उनकी कहानियों से बढ़ी। उनकी लम्बी कहानियोँ का संग्रह "गाँव" जब प्रकाशित होकर आया तो पाठकों के बीच बेहद लोकप्रिय हो गया क्योंकि उसमें गाँव का सच्चा रूप, गाँव का सही और सच्चा जीवन दिखाया गया था। लेकिन उस क़िताब को उनके समकालीन लेखकों ने स्वीकार नहीं किया क्योंकि बूनिन के अनुसार उन कहानियों में गाँव की निर्मम और बेरहम सच्चाई को उन्होंने निदर्यता के साथ व्यक्त किया था। लेकिन उनकी ये ही कहानियाँ भविष्यदृष्टा कहानियाँ मानी जाती हैं क्योंकि 1917 की महान् अक्तूबर समाजवादी क्रान्ति ने गाँव के उस जीवन को ही पूरी तरह से ख़त्म कर दिया, जो इवान बूनिन को बेहद प्रिय था।
समाजवादी क्रान्ति के बाद 1918 में इवान बूनिन मास्को छोड़कर रूस के दक्षिण में जाकर रहने लगे थे। रूस में "लाल सेना" और "श्वेत सेना" के बीच चल रहे गृहयुद्ध के दौरान रूस का यह दक्षिणी इलाका कभी लाल सेना के हाथ लग जाता था तो कभी उस पर फिर से श्वेत सेना का कब्ज़ा हो जाता। बूनिन इस गृह-युद्ध से बेहद परेशान और दुखी थे। दो वर्ष बाद उन्होंने रूस छोड़ने का निर्णय ले लिया। वे एक जलयान से पहले बलकान क्षेत्र में पहुँचे और वहाँ से वे फ़्राँस चले गए। बूनिन की जो रचनाएँ आज सारी दुनिया में प्रसिद्ध हैं, वे सभी रचनाएँ उन्होंने अपने प्रवास-काल में ही लिखीं।
इवान बूनिन और उनकी पत्नी वेरा मुरमत्सेवा शुरू में कुछ समय पेरिस में रहे और उसके बाद फ़्राँस के दक्षिण में स्थित ग्रास नगर में रहने चले गए। फिर यहीं पर उन्होंने अपने जीवन का लम्बा समय बिताया। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान और उसके बाद भी काफ़ी लम्बे समय तक बूनिन परिवार ग्रास में ही रहा। फ़्राँस में बूनिन ने ढेरों नई कहानियाँ और उपन्यास लिखे। फिर 1930 में उनका आत्मकथात्मक उपन्यास "अरसेनी का जीवन" प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास पर उन्हें नोबल पुरस्कार दिया गया।
नोबल पुरस्कार की घोषणा
10 नवम्बर 1933 को इवान बूनिन को नोबल पुरस्कार देने की घोषणा की गई। लेकिन बूनिन की रचनाएँ उससे पहले ही यूरोप में लोकप्रिय हो चुकी थीं। नोबल पुरस्कार ने उन्हें विश्वप्रसिद्ध लेखक बना दिया। इवान बूनिन को नोबल पुरस्कार के रूप में जो बड़ी धनराशि मिली थी, वह जल्दी ही ख़त्म हो गई क्योंकि बूनिन को पैसे को संभाल कर रखना नहीं आता था। इसके बाद के साल बूनिन परिवार ने बेहद ग़रीबी और निर्धनता में बिताए। द्वितीय विश्वयुद्ध के वर्षों में जब तक फ़्राँस पर फ़ासिस्ट जर्मनी का अधिकार रहा, बूनिन ने कुछ नहीं लिखा। उनका कहना था कि फ़ासिस्टों के साथ मैं कोई सहयोग नहीं करूँगा। फिर 1943 में न्यूयार्क में बूनिन की प्रेम-कहानियों का एक संग्रह प्रकाशित हुआ, जिसका नाम था "अँधेरी गलियाँ"।
जीवन के अन्तिम वर्ष
इवान बूनिन की मृत्यु विदेश में और मुसीबतों से भरा जीवन जीते हुए फ़्राँस में हुई और वे हमेशा अपने देश को याद करते हुए अपनी जनता को याद करते हुए, गहरे वियोग में तड़पते रहे। ये पंक्तियाँ रूस के एक महान् कवि और श्रेष्ठ लेखक इवान बूनिन को याद करते हुए रूसी लोग प्रायः दोहराते हैं।
अपने जीवन के अन्तिम वर्षों में इवान बूनिन महान् रूसी लेखक अन्तोन चेख़व के बारे में एक संस्मरणात्मक पुस्तक लिख रहे थे। लेकिन वह पुस्तक अधूरी रह गई। 8 नवम्बर 1953 की रात को अपनी पत्नी की गोद में सिर रखे-रखे इवान बूनिन का देहान्त हो गया। उन्हें पेरिस की सेंत झेनेव्येव-दे-बुआ रूसी कब्रगाह में दफ़ना दिया गया। तत्कालीन रूस में यानी तब के सोवियत संघ में इवान बूनिन की रचनायें प्रकाशित करने पर प्रतिबंध लगा हुआ था। लेकिन बूनिन की मृत्यु के बाद बूनिन की स्वदेश वापसी हो गई। 1954 से सोवियत संघ में बूनिन की कविताओं और कहानियों का प्रकाशन किया जाने लगा। करोड़ों की संख्या में उनकी रचनाएँ रूस में प्रकाशित हुईं। उनकी अब तक कई रचनावलियाँ और उनकी "चुनी हुई रचनाओं" के बीसियों संग्रह रूस में प्रकाशित हो चुके हैं। यहाँ यह बात भी उल्लेखनीय है कि रूस में उनकी वे किताबें, जिनमें उन्होंने रूस की अक्तूबर समाजवादी क्रान्ति के दिनों का ज़िक्र किया था, सिर्फ़ सोवियत संघ के विघटन से कुछ पहले ही प्रकाशित होनी शुरू हुई थीं। यहाँ हम रेडियो रूस के पाठकों के लिए उनकी कुछ कविताएँ प्रकाशित कर रहे हैं। इन सभी कविताओं का मूल रूसी भाषा से हिन्दी में अनुवाद किया है - हिन्दी के कवि अनिल जनविजय ने।