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इश्‍क / लीलाधर मंडलोई


हम डरते हैं जिस समन्‍दर से
म‍छलियां
उसी से इश्‍क करती हैं

मछलियां
कितनी छोटी सामने उसके
यहां तक कि विशालकाय व्‍हेल भी

इश्‍क की कोई सीमा नहीं