यही वह प्रश्न है,
जिसका जवाब ढूँढता हुं अंतर्मन से,
जिसे समझना चाहता हुं बचपन से,
जो घुमता रहता है मेरे मन मे
और गोते लेते रहता है मेरे जीवन मे।
ईश्वर,
कौन है?
क्या है?
कैसे है?
रहता है कहाँ?
करता है क्या?
पहचान है क्या उसकी?
कोई कहे ये सृष्टि है,
तो कहे कोई हमारी दृष्टि है।
कोई कहे अनंत असीम है वह,
तो कहे कोई मेरे जैसा और प्रतिम है वह।
कोई कहे भूखे की खाने में है वह,
तो कहे कोई नग्न की वसनो में है वह,
कहे कोई गरीबो के दिलो में है वह,
तो कोई कहे अमीरों के महलो में वह।
योगी कहे, योग में है वह
भोगी कहे, भोग में है वह
निरोगी कहे स्वस्थ जीवन में वह
तो कहे रोगी, दुख और पीड़न में है वह।
क्या, वाकई में ईश्वर है?
है, तो इतनी भिन्नता क्यो?
इतनी उलझन और दुर्लभता क्यो?
या है हमारी कल्पना,
या पूर्ण सत्य संकल्पना।
नही पता मुझे,
और न ही समझ पाता हूँ उसे,
ढूँढता हुँ और पाना चाहता हुं उसे,
जानना और समझना चाहता हुं उसे।