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उजला बखोर / राजीव रंजन

सुअर का बखोर
बजबजाती नालियां
और मैले-कुचैले
मिट्टी में लोटते-घसीटते सपने
लेकिन ईमानदार ।।
क्योंकि सपने बेचने की
चालाकियां इन्हें नहीं आती है
अपने पुश्त-दर-पुश्त
फायदे के लिए जीवन की
मनमाफिक व्याख्याएं
इन्हें नहीं आती है ।
लेकिन अब इन बखोरों में
मिट्टी की दीवारें और फूस की छत
धीरे-धीरे ईंट और सीमेंट से
मजबूत हो रही है ।
क्योंकि इन्होंने जान लिया है
उजले रंग की ताकत को
इन्होंने जान लिया है
उजले कपड़े के अंदर ही
दबी है सारी शक्तियां,
विचार, ज्ञान-विज्ञान
यहां तक कि धर्म भी ।
उन्होंने सत्ता के केन्द्र
‘व्हाइट हाउसों’ को भी
पहचान लिया है एवं
सभ्रांत नाकों पर
रखे जाने वाले उजले रूमालों को भी ।
उसे एहसास हो गया है
अपनी उंगलियों को घिस-घिस कर
लाल कर बनाए गए उजले रंग
की महिमा का ।
लेकिन नजदीक जाने पर
पता चलता है कि उस उजले कपड़े
एवं दरो-दीवार के अंदर
सदियों से दबाकर रखे
विचार, ज्ञान एवं धर्म से
ज्यादा सडांध बदबू आ रही है
बनिस्पत सुअर के बखोरों में
बजबजाती नालियों से ।
लेकिन सभ्रांत स्वांग के लिए
नाकों पर रूमाल रखने की बजाय
कुदाल ले हाथ में उतरना होगा
इस गंदगी की सफाई के लिए
इस उजले बखोर में ।