Last modified on 27 जून 2009, at 21:56

उतार / कविता वाचक्नवी

उतार


नहीं सोता सूर्य
किसी लहर के
गर्भ में
दूर खड़ा
विहँसता है
व्याकुल उछाह
और
उतराव देखता।