महुए के दल निकले
लाल लाल लाल लाल
कोमल कोमल
छोटे छोटे
रोमल रोमल
नीला नभ उद्भासित हो उठा
इस लाल सोते के अजस्र आवेग से
पृथ्वी का शून्य अंक भर गया
लू चली तो छू कर लजा गई
पहले के पत्रहीन महुए का
अरुण राग
व्योम के हृदय मेम बसा हुआ है
खग-मृग इस उत्सव के
अपने हैं
भागी हैं