सब कोलाहल सो जाने के बाद जो
शब्द जागता है
सुनना हो तो उसे सुनो।
एक मृदुल संगीत उभर धीरे धीरे
सारे सन्नाटे पर यों छा जाता है
जैसे किसी झील के निर्मल दर्पण में
एक जादुई नीलापन थर्राता है।
सब सत्यों के खो जाने के बाद जो
स्वप्न जागता है
बुनना हो तो उसे बुनो!
हर जुलूस कुछ नारों का अनुगामी है
भीड़ों का कोई व्यक्तित्व नहीं होता
सब से अधिक आणि जाती हैं अफवाहें
बहुमत में सच का अस्तित्व नहीं होता।
सब ज्वारों के ढल जाने के बाद जो
बच जाता है कूल पर
चुनना हो तो उसे चुनो।
शिल्पकार इतना न तराशो प्रतिमा को
परिष्कार से सहज रूप मर जाता है
यह अरूप अनमना उदास अधूरापन
कृतियों का योवन अनंत कर जाता है।
है भविष्य उसका ही जो कि अपूर्ण है
उसका हर क्षण एक नया संवेदन है
गुनना हो तो उसे गुनो!