वे आते हैं
नींद और उनींद में सपने बनकर
झक्क धुले इस्तरी किये कपड़े पहने
अपनी अलग पहचान के साथ
उनींदी आंखों में भस्म उड़ाकर
वे लोगों की टोपियाँ और पगड़ियाँ पहन
सजते जाते हैं
उनकी डोरियों में
न बंदर है न भालू
सांकलों में बाँध लाये हैं वे
अपने-अपने भगवान
वे ले जाते हैं नींद में से
सोना भरकर बगलों में दबाये
सीलबंद लोहे की चौकोर पेटियां
नींद और मौत का क्या भरोसा
जरूरी है समझना उनका आना