जो उम्र भर बिकते रहे...
बस वायदों के मोल,
जो मय घर-परिवार चढ़ गए
रोटियों के तोल,
जो बोलकर थक चुक गए
अब तो हे तारो राम !
इस साल की सारी दुआएं
एक उनके नाम
जो मातृभूमि पर बिना
इतिहास बाँचे बलि गए,
जो भव्य मीनारों के उन्नत
गौरवों से छले गए,
जो मिट्टी में गल कर मिटे
हुए नींव में गतनाम
जो राष्ट्र का करके कर्म,
पर पा रहे ‘निज भाग’ का,
है हाथ पर जिनके लिखा
‘कर कर्म पावन त्याग का’,
जो मंगलम की चिर-प्रतीक्षा में हैं सुब्हो-शाम
जो देश हैं, मीनार हैं,
जो ढाल हैं, तलवार हैं,
जो त्यक्त भूला प्यार हैं,
जो शांति की समिधा में सोए
अग्निबीज महान