उन दिनों
वह था सात साल का
और मैं -- पाँच की ।
मुझे तो थी टी० बी०
पर उस ग़रीब को नहीं ।
अकाल पीड़ितों बच्चों के भोजनालय में
मुझे मिलता था खाना
मुझे थी टी० बी०
पर उस ग़रीब को नहीं
मैं अपने रूमाल में
लाया करती थी बाहर दो कटलेट
मुझे थी टी० बी०
पर उस ग़रीब को नहीं।
मेरे हिस्से को लेता था मुँह में
एक बार में ही निगल डालता था
और धो आता था चर्च के पास के झरने से
मेरा नाम साफ़ करने का रूमाल।
पूछा मैंने उससे एक दिन
जब बैठे थे दोनों एक साथ :
अच्छा नहीं होगा क्या खाना कटलेट
एक बार के बजाय छह बार ?
उसने जवाब दिया -- बेशक नहीं
यदि खाऊँ उसके पाँच या छह हिस्से कर
मुँह में बचा रहेगा माँस का स्वाद
और अधिक सताने लगेगी भूख ।
युद्ध ने कील दिया मुझमें
उसका स्वस्थ अस्थिपंजर ।
मुझे थी टी० बी०
पर उस ग़रीब को नहीं ।
हम रह लिए ज़िन्दा
एक कूपन पर दोनों पलते हुए ।
दो अस्थिपंजर घुस आये स्वर्ग में
सिर्फ़ एक टिकट के साथ ।