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उपन्यास-सात / केदारनाथ अग्रवाल

आदमियों के
जेब कतर लेते हैं
बढ़े चढ़े मूल्यों के उपन्यास
आँख से पढ़कर
दिल और दिमाग से
भोगना पड़ता है संत्रास

रचनाकाल: २६-११-१९६८