फटती हुई पौ में
पाथती हुई उपले
वह औरत
पाथती हुई
अपने सुख और दुख
गर्मी और सर्दी से
भीगे हुए जुझारू दिन
उपलों पे भरी हुई हैं
पीड़ा भरी हथेलियाँ
हाथ की रेखाएँ ।
फटती हुई पौ में
पाथती हुई उपले
वह औरत
पाथती हुई
अपने सुख और दुख
गर्मी और सर्दी से
भीगे हुए जुझारू दिन
उपलों पे भरी हुई हैं
पीड़ा भरी हथेलियाँ
हाथ की रेखाएँ ।