सब तरहें चौपट्ट अनाथा छथि विकला गान्धारी
भाय-जमाय-पुत्र हीना भय शोचहिं मरथि बेचारी॥81॥
सुनु संजय हतभाग्य एहेन हम देखलहुँ अपनहि आँखि
सर्वनाश वंशक कय अपनहि छी जिबइत बिनु पाँखि॥82॥
काल कराल युद्ध नहि देखल नीति अनीति बिसारल
भाई-बंधु वनितादिन मानल सर्वनाश कय छाड़ल॥83॥
अहह ! आह ! केवल दंश बाँचल, सात, तीन, दुहु पक्षे
अश्वत्थामा, कृप, कृतवर्मा बचला हमरा पक्षे॥84॥
पांचो पाण्डव, कृष्ण, सात्यकि केवल सातो दक्षे
महानाश कय सबकेँ छाड़ल कयलक सबके भक्षे॥85॥
सात एग्गारह सैन्य अक्षौहिणी नाश भेल दुहु पक्षे
भारत गारत भेल अही सँ वीरविहीन समक्षे॥86॥