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उबंटू / शीतल साहू

उबंटू,
सच में थोड़ा अजीब-सा शब्द है
मन में सवाल उठा कि ये क्या है
जिज्ञासा उठी कि इसका मतलब क्या होता है।

मन में उठी जिज्ञासा को शांत करने
उस अनूठे शब्द को जानने
उसका अर्थ और भावार्थ समझने
इधर उधर, किताबो में लगी नज़र मेरी दौड़ने।

आखिर ढूँढ ही लिया वह अर्थ
पा ही लिया उसका भावार्थ
सच में जिसे समझ रहा था
इतना बेढंगा, उटपटांग और अजीब

उसे जान और समझकर
मन गदगद हो गया
मस्तिष्क भी अचंभित हो गया
दिल भी भर आया
सिर नतमस्तक हो गया।

उबंटू का अर्थ है
मैं हुँ, क्योकि हम है
I AM BECAUSE WE ARE.

दूसरे दुखी है तो मैं कैसे सुखी हो सकता हुँ
दूसरे भूखें है तो कैसे मैं खा सकता हुँ
दूसरे कष्ट में है तो मैं कैसे आनंद में हो सकता हुँ
दूसरे अगर रो रहे है तो कैसे मैं हँस सकता हुं।

समाज एक सहजीविता का प्रतीक है
एक का कष्ट सबका कष्ट है
एक का दुख सबका दुख है
एक का सुख सबका सुख हैl

और पता है ये शब्द कहाँ से आया है
अफ्रीका के दुर्गम बीहड़ जंगलो से
उन्ही उबड़ खाबड़ पथरीली पगडंडियों से
वनवासी, आदिवासी कबीलों से
असभ्य और पिछड़े समझे जाने वाले लोगों से।

मानवता और सहजीविता का प्रतीक है उबंटू
तो क्या, हम सभ्य और विकसित कहलाने वाले लोग
उस उबंटू को ना अपनाये
क्यो ना हम भी कहे
मैं हुँ क्योकि हम है।