सान्ध्य काल
धूप-छाँह बीच,
गिर रही फुहार
रिमझिमा रहा
गगन !
बार-बार
द्वार थपथपा रहा
समय / अ-समय
किस क़दर
उतावला पवन !
दूर-पास
खेत हाट चौक में
अधीर
जान-बूझ
भीग-भीग
थरथरा रहा
प्रिया बदन !