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उमंग / महेन्द्र भटनागर

सान्ध्य काल

धूप-छाँह बीच,
गिर रही फुहार
रिमझिमा रहा
गगन !

बार-बार
द्वार थपथपा रहा
समय / अ-समय
किस क़दर
उतावला पवन !

दूर-पास
खेत हाट चौक में
अधीर
जान-बूझ
भीग-भीग
थरथरा रहा
प्रिया बदन !