नील नभ-सर में मुदित मुग्धा उषा-रानी नहाती है !
- शशि-बंध में बँध, रात भर आसव पिया
- प्रतिदान जिसका प्रीति पावन से दिया
- नव अंगरागों से जगत सुरभित किया
सोच हेला-हाव, अरुणिम तार रेशम के बहाती है !
- नव रंग सरसिज के भरे जिसका वदन
- परितोष भावों को किये जैसे वहन
- प्रिय कल्पना में मंजु मंगल मन मगन
रे अकारण हर दिशा सीकर उड़ाकर गहगहाती है !