उसका प्रेम
झलक दिखला-दिखला कर
अपने सौन्दर्य के
अनेक रंगों से रंगता रहता है मुझे ।
ये सांसें कैसी हैं जो टूटती नहीं हैं कभी
थक जाता है सिर्फ शरीर
और मिलने की चाह कभी कम न होती हुई
मालूम नहीं कहां तक इतने अधिक जुड़े हैं हम
कभी-कभी लगता है
हम सुन्दरता के मोह से दूर चले गए हैं
अब हम स्वतंत्र आकाश में हैं
सारी बाह्यï ऊर्जाओं की धडक़नों से दूर
हम बस यहां हैं
बलिष्ठता से आपस में बंधे हुए
यहां घटने-बढऩे जैसा कुछ भी नहीं है
तृप्ति और अतृप्ति से दूर
हमारा एक दूसरे में होना जैसे
इंद्रधनुष में रंगों का मिलन।