उसने उदास भाव से कहा
भयावह मंदी का दौर है यह
उसके आसपास हर चीज़ पर
छाई थी धूल की एक परत
मंदी का आलम यह था कि
पड़ोस के सेवानिवृत्त विद्युतकर्मी ने
फेंका एक रूपये का सिक्का
और खरीदी दो फ़िल्टर बीड़ी
हम चुपचाप घंटे भर बैठे रहे
"मौत और ग्राहक का भरोसा नहीं
कब आ जाये," उसने कहा
मैंने कहा
"अब ग्राहक आने से रहा"
उसने बदरंग कपड़ा उठाया
और उस तख्ती को पोंछने लगा
जहाँ लिखा था
"उधार प्रेम की कैंची है"
जिंसों के बीच
हम दोनों
लगभग जिंसों की तरह बैठे रहे
धूल की एक तह
हम पर भी चढ़ती रही
बदस्तूर।