उस शाम
शरारती बच्चों जैसे
उन पहाड़ों ने
आँख मिचौनी खेलते हुए
सूरज को ख़ूब छकाया
उसकी दिप-दिप थाली पर
मारकर हाथ
सारा गुलाल
दिया उड़ा
और भाग खड़े हुए
अबकी बार
छिप गया
सूरज भी कहीं
नही मिला
देवदारुओं को ढूंढने पर भी
तब
मट्मैला बैंजनी सूट पहन
तारों की ओढ़नी लिए
पहाड पर
उतर आई रात