तुम
इस पर चढ़ सकते हो बंधु!
अब तक जो तुम्हें
दिखाई देता है पहाड़
तुम इस पर
चढ़ सकते हो
ऊंचाईयाँ हमेशा
अपराजेय नहीं होतीं
बस इतनी कि
वे पहले भरती हैं भय
और छोटा करने की कोशिश में
लगाती है अट्टहास
इस खोखले अट्टहास को
ऊंचाई से मत मापो बन्धु!
तुम्हारे अन्दर लिपटी पड़ी हैं
कितनी ऊँचाईंया
उन्हें खोलो
फिर देखना
हर पहाड़ झुककर
चलने लगेगा
तुम्हारे साथ ।