मैं पूरी ऋतु ही लेकर आई थी
हर कालखंड का हर मौसम
तुमने चुन लिए सारे वसन्त
अपने लिए
सूखे पत्तों की गठरी
वापस लाई मैं
समय के बिल्कुल
दूसरे मुहाने पर
जब खोलकर देखा
एक हरा पत्ता जाने कैसे
मुस्करा रहा
मेरी हथेली पर
तेरी मुस्कान का।
मैं पूरी ऋतु ही लेकर आई थी
हर कालखंड का हर मौसम
तुमने चुन लिए सारे वसन्त
अपने लिए
सूखे पत्तों की गठरी
वापस लाई मैं
समय के बिल्कुल
दूसरे मुहाने पर
जब खोलकर देखा
एक हरा पत्ता जाने कैसे
मुस्करा रहा
मेरी हथेली पर
तेरी मुस्कान का।