एकता / बाल गंगाधर 'बागी'

फल्सफी शायर कोई मस्ताना है
हमारे दर्द से उनका अदब बेगाना है
अरे उजड़े चमन में, गुल खिला नहीं करते
हमें गुलशन को फिर से नया बनाना है
आओ मिलके इक हार में समा जाएं
जो हुआ कल उसे अब नहीं दोहराना है
होश वालों जरा होश सम्भालो अपनी
संभल जाओ यह आया नया ज़माना है
मेरे दर्द का बाजार में सौदा करके
नाम कमा के वो लूटता खजाना है
कहीं न खो जाओ अपने ही मकानों में
हारने का यह तो सिलसिला पुराना है
जगाओ अपने अंदर की छिपी ज्वाला को
आज आज़ाद अपनी मंज़िलों को पाना है
जो लूटते हैं, गुरबत में जीने वालों को
उनका बाद में बचता भी क्या खज़ाना है
जातिय दलदल में जो जिंदगी फंस जाती है
याद रखो उन्हें वहाँ से उठाना है
हज़ार खुशी का मौसम कहाँ सुहाना है
‘बाग़ी’ गरीब घर में जब एक नहीं दाना है

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