बाँध गई रातें भुजबँधनी
अनदेखी एक अरगनी
यादों की एक तेज़ धार
काट गई नींद का कगार
डूब गए घाट के महल
रूख ढह गए अगल-बगल
हम ज्यों-ज्यों दुहराए कूल-से
हवा हुई और कटखनी ।
बाँध गई रातें भुजबँधनी
अनदेखी एक अरगनी
यादों की एक तेज़ धार
काट गई नींद का कगार
डूब गए घाट के महल
रूख ढह गए अगल-बगल
हम ज्यों-ज्यों दुहराए कूल-से
हवा हुई और कटखनी ।