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एक पाती / नवनीत नीरव


एक पाती
कभी सोचता हूँ एक पाती लिखूं
सावन की रिमझिम फुहारों के नाम
हर साल मिलने आती हैं मुझसे
कभी भी कहीं भी सुबह हो या शाम
छत के मुंडेरों पर खेतों में अमराई मे
अनजाने सफर में या रस्ता अनजान
कही भी रहूँ अक्सर खोज लेती हैं मुझे
इसे प्यार कहूं या दूं कोई नाम
कुछ कहने में शर्म आती है मुझे
कैसे कहूं अपने मन की विकल तान
इसलिए सोचता हूँ इक पाती लिखूं
सावन की रिमझिम फुहारों के नाम