एकलव्य !
हम यह नहीं कहते
कि बाँट पाएँगे तुम्हारा दुख ।
तुम्हारे अन्तर्द्वन्द्व को समझने का भी
हम दावा भी नहीं करते
इसलिए
पूछना चाहते हैं तुम्हीं से —
कितनी पीड़ा हुई थी
कितना लहुलुहान हुआ था हृदय ?
लोग कहते हैं
तुमने हंसते-हंसते
काट दिया था अपना अँगूठा
सच बताना
क्या तुम्हारी अँगूठाविहीन हंसी
सचमुच निर्मल थी ?