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एक मीरा / संगम मिश्र

क्यों तुमसे सम्बन्ध जुड़ा है?
किञ्चित जान न पाऊँ मैं।
मेरे सारे गीत तड़पते,
कैसे उनको गाऊँ मैं॥

जाने कैसी अशुभ घड़ी थी?
तुमको मान लिया अपना।
सोचा था मनमीत बनोगे,
पर यह था झूठा सपना।
रजनी की बाँहों में प्रिय था,
मञ्जुल पावन दृश्य नया।
किन्तु प्रात से लज्जित होकर,
नींद खुली भ्रम टूट गया।

व्याकुल हो टूटे सपनों को,
अपने पास बुलाऊँ मैं।
मेरे सारे गीत तड़पते,
कैसे उनको गाऊँ मैं॥

सुर संगम में खो जाऊँ जब,
यादों की वीणा लेकर।
सारे शब्द सिसक पड़ते हैं,
अन्तर की पीड़ा लेकर।
गीतों की प्रत्येक पङ्क्ति में,
अन्तर्व्यथा झलकती है।
सुनने वालों की भी आँखें,
मेरे लिये छलकती हैं।

अपनी विरह वेदना गाकर,
क्यों सबको तड़पाऊँ मैं?
मेरे सारे गीत तड़पते,
कैसे उनको गाऊँ मैं॥

मिलन नहीं, केवल तड़पन है,
क्या करना इस जीवन का?
सम्भव है यदि, वापस ले लो,
दुख मिट जाए धड़कन का।
फिर कोई भी भेद न होगा,
मिट जायेगी हर दूरी,
मिट्टी का क्या, गल जायेगी,
इच्छायें करके पूरी।

मात्र मिलन की आशा लेकर,
दर दर ठोकर खाऊँ मैं।
मेरे सारे गीत तड़पते,
कैसे उनको गाऊँ मैं॥

तुम बिन कैसे बीत रहे दिन,
कैसी बीत रही रातें?
कविताओं में विलखाती हैं,
निज मन की सारी बातें।
आँखो से अनुरोध बरसता,
और न मुझको तड़पाओ।
टूट रही है आस निरन्तर,
प्राणेश्वर! अब आ जाओ।

एक बार ही दर्श तुम्हारा,
जीवन में पा जाऊँ मैं।
मेरे सारे गीत तड़पते,
कैसे उनको गाऊँ मैं॥

क्यों तुमसे सम्बन्ध जुड़ा है?
किञ्चित जान न पाऊँ मैं।
मेरे सारे गीत तड़पते,
कैसे उनको गाऊँ मैं॥