एक रोज
एक सपना देखा
उस सपने मे
तुम थीं
एक धुंधला
चेहरा था
और चारों ओर
लगी थी
भीड़ तुम्हारे,
रिश्ते नातेदारों की।
पहले पहल
डरा मैं
लेकिन
फिर आगे बढ़ा
देखने को
तब एक
ऐसा दृश्य
नजर ने देखा
जिसे देखकर
प्रेमी के
धरती-अम्बर
फट जाते हैं।
जिसे देखकर
प्रेमी के
आयु के
क्षण घट जाते हैं।
वो धुंधला चेहरा
एक सूत्र
तुम्हारे गले मे
बांध रहा था
और एक
उदास चेहरा
दूर खड़ा
बेबस बेचारा
अपना सारा
सब कुछ
रीत रहा था
जैसे उसे
हराकर कोई
उससे तुमको
जीत रहा था
उसका किस्सा
जानने बाले
सारे कंठ रुंधे थे
लेकिन,
तुम्हारे नयन नम नहीं थे......
उस ख्वाब में हम नहीं थे.....