ग्लैमर की दुनिया में कदम रखते ही
कलाकार, ऐसी मायावी रोशनी से घिर जाता है
जिसकी चकाचौंध में वह सिर्फ अपने आपको ही
देख पाता है, औरों को नहीं
सफलता उसकी आत्ममुग्धता को और बढ़ाती है
असाधारण होते हुए सामान्य बने रहने का तनाव,
सफलता के शिखर पर टिके रहने की चिंता,
समय के गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध लड़ते हुए,
आसमान से जमीन पर गिरने का डर,
बाजारवाद के इस उत्तर-आधुनिक दौर में
सेलेबिलिटी के चार्ट पर नम्बर-1 पर
चिपके रहने का दबाव,
उसे आत्मध्वंस की
उस अंतहीन सुरंग में धकेल देते हैं
जिसमें से अब तक
कोई जीवित बाहर नहीं निकल पाया-
दुनिया का सबसे बड़ा रॉकस्टार: एल्विस प्रेस्ले
और सबसे बड़ा पॉपस्टार: माइकल जैक्सन भी नहीं
ऐसी अकाल मृत्यु देखकर
समदर्शी होने का अर्थ समझ में आ जाता है
यह आकस्मिक नहीं है कि टैगोर गीतांजलि में
एक जगह ईश्वर से प्रार्थना करते दिखाईदेते हैं-
”मेरे जीवन को बांसुरी के समान सरल कर दे,
और उस बांसुरी के सभी छिद्रों में,
अपने गीतों का स्वर भर दे
और पढ़ रहे थे
अपने जीवन के अंतिम दिनों में
टैगोर की कविताएं-
एम.जे. यानी
माइकल जैक्सन।