ऐसी भी होती होगी
आवाज़
न कोई बोलता जिसमें
न सुनता है जिसे कोई
होता होगा ऐसा मंज़र
न जिसमें दीखता है कुछ
न जिसको देखता कोई
प्रतीक्षा होगी ऐसी भी
किसी के लिए नहीं है जो
न जिस को कर रहा कोई
प्रेम की बस्ती देखो
बस्ती है फिर भी
न इस को बसाता कोई
न इसमें बसता है कोई ।
—
22 अप्रैल, 2009