Last modified on 16 अक्टूबर 2014, at 07:05

ऐ साथी / नज़ीर बनारसी

परलोक की बातें तो चल कर परलो में समझी जाएँगी
हम सब की मुहब्बत का बन्धन इस पार न टूटे ऐ साथी !

वह काम करें हम क्यों जिससे उस राष्ट्रपिता का दिल टूटे
मन्दिर का कलश या मस्जिद का मीनार न टूटे ऐ साथी !

हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आपस में रहें भाई-भाई
गूँधा है जो बूढ़े माली ने वह हार न टूटू ऐ साथी !

उस वक्त तलक सुख-सागर की लहरों से न खेला जाएगा
इस देशद्रोही की जब तक तलवार न टूटे ऐ साथी !

जीना हो कि मरना ऐ साथी सब साथ का अच्छा होता है
दम टूटे तो टूटे आपस का व्यवहार न टूटे ऐ साथी !

प्रचार मुहब्बत का जेैसे करता है बराबर करता चल
कुछ टूटे न टूटे, बापू की तलवार न टूटे ऐ साथी !

रखना है ’नजीर’ उनको जो सुखी उपदेश का उनके पालन कर
इस तार से वह सुनते हैं ख़बर, ये तार न टूटे ऐ साथ !

शब्दार्थ
<references/>