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ओस / वीरा

रात की आंधी

और तूफ़ान से

टूट गए हैं

पीले बेजान पत्ते


और सुबह की ओस

चमक रही है

उन पर भी


नई कोंपलों के साथ


(रचनाकाल : 1978)