|
ओ आकाश ! अब सपने में दिखाई देगा तू मुझे
अंधा हो गया तू शायद, हो गया बेड़ा ग़र्क तेरा
जल गया दिन यह, जल गया कोरे काग़ज़-सा
थॊड़ी-सी राख बची और थोड़ा-सा अन्धेरा ।
(रचनाकाल : 1911)
|
ओ आकाश ! अब सपने में दिखाई देगा तू मुझे
अंधा हो गया तू शायद, हो गया बेड़ा ग़र्क तेरा
जल गया दिन यह, जल गया कोरे काग़ज़-सा
थॊड़ी-सी राख बची और थोड़ा-सा अन्धेरा ।
(रचनाकाल : 1911)