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ओ प्रिया / ओम प्रभाकर

ओ प्रिया
पिन्हाऊँ तुम्हें जुही के झुमके।

इस फूली संझा के तट पर,
आ बैठें बिल्कुल सट-सटकर,
दृष्टि कहे जो
उसे सुनें तो
अर्थ खिलेंगे नए आज गुमसुम के।

किरन बनाती तुझे सुहागिन,
आँखें खोल अरी बैरागिन,
इत-उत अहरह
अहरह इत-उत
लट ले तेरी मदिर हवा के ठुमके।