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औरत / दीपाली अग्रवाल

 ग़़ज़लों में किसी शायर के अशआर के लिए
काव्य के रसों में श्रृंगार के लिए
तू नहीं है फ़क़त जिस्म बाज़ार के लिए
कि लड़ना है तुझे दिल की आवाज़ के लिए

हिस्सा नहीं किस्सों का, उनवान है तू
तमाम जानें हैं जिससे वो जान है तू
रिश्तों की जिल्द है, दीवान है तू
तेरे ख़याल तेरे हैं
उनका कानून है तू, संविधान है तू
तेरे उन्हीं ख़याल और अरमान के लिए
कि उड़ना है तुझे अपने आसमान के लिए