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कइसे हिरदे धीर धरे? / पीसी लाल यादव

पिरित बनगे पीरा-पहार, कइसे हिरदे धीर धरे?
संगी के सुरता-संसो में, नैना निसदिन नीर झरे।

मयारू के मन का उही जाने?
या जाने ऊपर वाले भगवान
मैं तो आसरा म बइठे हँव
बाट जोहत संझा-बिहान॥

काखर करा गोहरावंव दुख, कोन ह मोर पीर हरे?
पिरित बनगे पीरा-पहार, कइसे हिरदे धीर धरे?

मोला हवय भरोसा लहुटही,
संग जीए-मरे के करे करार।
उजियारी तो आबेच करही
कब ले घपटे रही अंधियार?

परछो लेवत हवय का बेरा? महुआ दोना खीर धरे।
पिरित बनगे पीरा-पहार, कइसे मन धीर धरे?

कुछु-काही कर ले ये दुनिया,
मया-पिरित ह इहाँ जीते हे।
फुलवारी म फूल के जिनगी
काँटा मन के बीच म बीते हे॥

उसर-पुसर पारा-परोस के, बतरस-बोली तीर परे।
पिरित बनगे पीरा-पहार के, कइसे हिरदे धीर धरे॥