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कत‍आत / नक़्श लायलपुरी

1.

नक़्श से मिलके तुमको चलेगा पता
जुर्म है किस क़दर सादगी दोस्तो

2.

कई बार चाँद चमके तेरी नर्म आहटों के
कई बार जगमगाए दरो-बाम बेख़ुदी में

3.

हमने क्या पा लिया हिंदू या मुसलमाँ होकर
क्यों न इंसाँ से मुहब्बत करें इंसां होकर

4.
 
ये अंजुमन, ये क़हक़हे, ये महवशों की भीड़
फिर भी उदास, फिर भी अकेली है ज़िंदगी