Last modified on 18 फ़रवरी 2014, at 13:21

कभी / फ़्रेडरिक होल्डरलिन

कभी तुम इतने क्षणिक हो गए हो ?
जिन गीतों से तुम्हें था इतना प्यार
                                कभी
क्या उनसे अब नहीं रह गया है प्रेम ?

जब तुम युवा थे
और गाया करते थे
तब आशा के उन दिनों में
क्या कभी तुमने पाया था
कोई ओर-छोर, या कोई अन्त ?
वैसा ही है मेरा गीत
जैसा था वह परम आनन्द ।
क्या अब भी तुम नहाओगे
डूबते सूरज की सुनहरी किरणों में ?
सन्ध्या चली गई है
धरती तःअण्डी है
और उल्लू
अब तुम्हारी आँखों के सामने
चिल्ला रहा है
          विकट स्वर में ।