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कम्पन / विष्णुचन्द्र शर्मा

आकाश से छोटी है छत
जो बतियाती है आसमान से
जो आम की शाखाओं से टकराती है
जो डाब के गुच्छों से लड़ती है
जो चुप बैठे कबूतरों से कहती है:
‘आओ, चुगो चारा
और भर दो
मेरे सीने में कम्पन!’