हमारे हाथ में सोने की नहीं
सरकंडे की कलम है।
सरकंडे की कलम
खूबसूरत नहीं, सही लिखती है
वह विरोध के मंच लिखती है
प्रशस्ति-पत्र नहीं लिखती है
हम कठघरे में खड़े हैं, खड़े रहेंगे
और कठघरे में खड़े हर उठे हुए हाथ को
अपने हाथ में ले लेंगे
राजा कौरव हों या पांडव—
हम तो सदा वनवास ही झेलेंगे।