Last modified on 13 मई 2010, at 11:50

कलरव किसको नहीं सुहाता / सुमित्रानंदन पंत

कलरव किसको नहीं सुहाता?
कौन नहीं इसको अपनाता?
यह शैशव का सरल हास है,
सहसा उर से है आ जाता!

कलरव किसको नहीं सुहाता?
कौन नहीं इसको अपनाता?
यह ऊषा का नव-विकास है,
जो रज को है रजत बनाता!

कलरव किसको नहीं सुहाता?
कौन नहीं इसको अपनाता?
यह लघु लहरों का विलास है,
कलानाथ जिसमें खिंच आता!

रचनाकाल: १९२२