कविता मुझे लिखती है
या, मैं कविता को
समझ नहीं पाती
जब भी उमड़ती है
भीतर की सुगबुगाहट
कविता गढ़ती है शब्द
और शब्द गन्धाते हैं कविता
जैसे चौपाल से संसद तक
गढ़ी जाती हैं ज़ुल्म की
अनगिनत कहानियाँ,
वैसे ही,
मुट्ठी भर शब्दों से
गढ़ दी जाती है
काग़ज़ों पर अनगिनत
कविताएँ और कविताओं में
अनगिनत नक़्श, नुकीले,
चपटे और घुमावदार
जो नहीं होते सीधे
सपाट व सहज वर्णमाला
की तरह !!