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अस्वीकरण
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कविता / नवनीत पाण्डे
चर्चा
अथाह नीले में
चुपचाप
टप्प से गिरी एक नन्हीं सी कंकरी
बनाती
एक के बाद एक कई वृत्त
होती अथाह
चुपचाप