गर्जनाओं के बीच
अग्निकुण्डों के बीच
स्वतःस्फूर्त कटु-कलहों के बीच
आकाश से उतर आती है
वह दिव्य शक्ति
हम धरती-पुत्रों के पास
आँखों में वैंगनी आभा लिया
उद्वेलित समुद्र में वह
शान्तिप्रद उड़ेलती है द्रव।
(1850)
गर्जनाओं के बीच
अग्निकुण्डों के बीच
स्वतःस्फूर्त कटु-कलहों के बीच
आकाश से उतर आती है
वह दिव्य शक्ति
हम धरती-पुत्रों के पास
आँखों में वैंगनी आभा लिया
उद्वेलित समुद्र में वह
शान्तिप्रद उड़ेलती है द्रव।
(1850)