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कविता / मणि मोहन

बस जाने ही वाला था
नींद के आग़ोश में
कि अचानक
जेहन में चमकती है
कविता की एक पंक्ति ....

रोशनी से भर जाता है जेहन
रोशनी में नहा जाती है नींद
और सपने तरबतर हो जाते हैं
रोशनी से ....

लफ़्ज़ों का दरिया
बहाए लिए जाता है मुझे
किसी सुबह की चट्टान पर
पटकने को बेताब ।