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कविता / विजेन्द्र

कैसे बदले दुनिया भाया
कैसे जूआ उतरे
कैसे एका होय श्रमिकों का
कैसे मानुख सुधरे।
कुल-भद्रों का कहना
यह है
क्यों कविता को रौंदो
वह तो है
कनक कामिनी
काले धन में दमक दामिनी
क्यों उसको कींच लिथोरो
सुख की नींद
खुद भी सोओ
चिदानंद मुझे सोने दो
जब भी कहते बात
बदल की
उसके रोयें जागे
जब-जब मानुख
अस्त्र उठाता
भद्रकुलीना भागे।
              2003