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कविता जैसी / अमरजीत कौंके

वह जो खुद कविता जैसी है
मुझ से कहती
मेरे लिए इक कविता लिख दे

अपने शब्दों में मेरी
साँसों की खुश्बू को भर दे
अपने लफ़्ज़ों में
प्यार में भीगे मेरे
दिल की भीगी भीगी
धड़कन लिख दे

कैसे कहूँ कि
मेरे शब्दों में तो उसका
सुंदर मुखड़ा
तैर रहा है जैसे झील में
कोई चँद्रमा रात पूनम का
डूबता तैरता
मेरे ख्वाबों में आ कर
रोज़ ही उसका चंचल चेहरा
सपनों में है जगमग करता

कैसे कहूँ कि मेरे दिल के
सूने मरूस्थल में
वह किसी चंचल बदली की तरह
आ कर रिमझिम बरस गई है
मेरे उजड़े नयनों में
आकाश में जड़े सितारों की तरह
कितने सपने रख गई है
बुझ चुके इस दिल के अंदर
चिंगारी जीने की छोड़ गई है
उजड़े सूने खाली जंगल में
प्यार की रौशनी भर गई है

वह जो खुद कविता जैसी है
मुझ से कहती
मेरे लिए इक कविता लिख दे।