कविता नन्दन
के अभिनन्दन
में हो ऐसा क्रन्दन !
फटे ढोल पर
थिरक-थिरक कर
नाचे जब गोबरधन !
अपनी गावै,
मौज उड़ावै,
रहै सदा बन ठनठन !
दूरदर्शी है दूरदास,
कुछ बात करै दूरदर्शन !
विकटनितम्बा
कवयित्रियों के
दूरस्थ करै करमर्दन !
कविता नन्दन
बहुभंजन
रमा करो हे गंजन !
भारत यायावर से मत छिटको,
साथ चलो जी बन-ठन !