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कवियों / कर्मानंद आर्य

लिखो, तुम सत्तर प्रतिशत
गरीबी रेखा से नीचे भुक्कड़
खा रहे हो देश का सारा अनाज

लिखो, यह तुम्हारा आठवां बच्चा है
जाने और कितना पैदा होंगे
सूअर!!!
लिखो, तुम पैदा ही होते हो
मजदूरों की जमात बनाने के लिए

भूख से बिलबिलाना
तुम्हारी पीढ़ियों की आदत है

लिखो, तुम सूअर खाकर
जोतते रहोगे हमारा खेत

गाली खाने के लिए पैदा होती हैं तुम्हारी बेटियां
मुफ्त का पानी और
अन्तोदय के अन्न से सड़ गई हैं आंतें

लिखो, यह जो आरक्षण के बल पर
चिल्ला रहे हो तुम लोग
हमने दिया है तुम्हें भीख में

लिखो, यहाँ जीना दुश्वार है गरीबों का
उन्हें मिलता नहीं भरपेट भोजन

पर मालिक, जानता हूँ तुम लिखोगे
मनरेगा से गरीबों का भला हुआ है
साठ साल से अनाज बांटकर
हम ख़त्म कर रहे हैं गरीबी

तुम लिखोगे
गरीबी दूर होनी चाहिए
भुखमरी दूर होनी चाहिए
सबको मिलना चाहिए न्याय

और तुम्हारा दोस्त कहेगा
बहुत अच्छी कविता है पंडित!!
बधाई!!

कविता में सच कहीं बिलबिलाता रहेगा
तुम डकार मारकर फिर लिख दोगे कोई कविता