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कवि / अशोक शुभदर्शी

कवि कोय ब्लोक होल जैसनों नै होय छै
वें रिटर्न दै छै
जतनां ग्रहण करै छै
ओकरा सें जादा
वें करेॅ सकै छै
स्थूलोॅ केॅ, सूक्ष्म सें सूक्ष्म
आरो सूक्ष्म केॅ स्थूल
ऊ मरै छै दुनिया के
वै सब चीजोॅ लेॅ
जेकरा लेॅ आरो कोय दोसरोॅ नै मरै पारै।

कवि देखै में लागै छै कोमल
मतुर ऊ होय छै
पहाड़ जैसनोैं
लौटावै छै आवाज
सजाय-संवारी केॅ
वें नै छिपाय छै
अपनोॅ भीतर पानी आरो हवा भी
वें झरना दै छै
नदी दै छै
आरो फूलोॅ-फलोॅ सें लदलोॅ जंगल
वें भरै छै रंग जीवन में
तितली के जैसनों
गढ़ै छै पत्थरोॅ के मूरत
जिन्दा रखेॅ के वास्तें
अपनोॅ मजबूत इरादा केॅ।